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महान योद्धाऔ की शौर्य गाथा


● #शौर्य_गाथा
★चार भुजाधारी ऐतिहासिक युद्ध ★
चित्तोड़ की धरती पर स्वाभिमान,मर्यादा और धर्म रक्षा हेतु यु तो सैंकड़ो युद्ध हुए दशको जय पराजय के साथ सत्ता परिवर्तन लाखो योद्धाओ को वीरगति प्राप्त हुई .....हल्दीघाटी की पहली मिट्टी गेरुए रंग में रंग गयी किन्तु एक अविस्मरणीय युद्ध ऐसा भी हुआ जिसमे अखिल विश्व पालन कर्ता भगवान श्री हरी का चार भुजा धारी रूप सदृश हुआ हो और उस दुस्ट दमनकारी रूप धरने बाले थे दो विकट योद्धा एक जयमल मेड़तिया तो दूजे कल्ला राठौर जी । तो आइये जाने की इस #चारभुजाधारी युद्ध के नाम सनातन गौरव गाथा को ।
राव जयमल का जन्म आश्विन शुक्ला ११ वि.स.१५६४,ईस्वी सन्१७ सितम्बर १५०७ शुक्रवार के दिन हुआ था ।बाल्य् काल से ही मेड़ता रियासत पर पड़ोसी रियासत द्वारा होते आक्रमणों में समय समय पर युद्ध करते युवावस्था तक करीव२२युद्ध लड़ चुके मेड़तिया सिरदार जयमल एक असाधारण योद्धा बन चुके थे ।
कुछ समय बाद उन्हें चित्तोड़ की रक्षा का अहम जिम्मा सौंप चित्तोड़ नरेश अपनी रक्षा व्यवस्था को और सुदृण कर देते कि उसी समय कई बार का परास्त दुस्ट मुगल आक्रांता अकबर द्वारा चित्तोड़ पर चढाई कर देता हे ।
आक्रमण का समाचार सुन जयमल चित्तोड़ पहुँच जाते हे | २६ अक्टूबर १५६७ को अकबर चित्तोड़ के पास नगरी नामक गांव पहुँच गया | जिसकी सूचना महाराणा उदय सिंह को मिल चुकी थी और युद्ध परिषद् की राय के बाद चित्तोड़ के महाराणा उदय सिंह ने वीर जयमल को ८००० सैनिकों के साथ चित्तोड़ दुर्ग की रक्षा का जिम्मा दे स्वयम दक्षिणी पहाडों में चले गए |
विकट परिस्तिथियों बाले युद्ध के अनुभवी जयमल ने खाद्य पदार्थो व शस्त्रों का संग्रह कर युद्ध की तैयारी प्रारंभ कर दी |
उधर अकबर ने चित्तोड़ की सामरिक महत्व की जानकारिया इक्कठा कर अपनी रणनीति तैयार कर चित्तोड़ दुर्ग को विशाल सेना के साथ घेर लिया और दुर्ग के पहाड़ में निचे सुरंगे खोदी जाने लगी ताकि उनमे बारूद भरकर विस्फोट कर दुर्ग के परकोटे उड़ाए जा सकें,दोनों और से भयंकर गोलाबारी शुरू हुई तोपों की मार और सुरंगे फटने से दुर्ग में पड़ती दरारों को जयमल रात्रि के समय फ़िर मरम्मत करा ठीक करा देते |
अनेक महीनों के भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम नही निकला | चित्तोड़ के रक्षकों ने मुग़ल सेना के इतने सैनिकों और सुरंगे खोदने वालो मजदूरों को मारा कि लाशों के अम्बार लग गए | बादशाह ने किले के निचे सुरंगे खोद कर मिट्टी निकालने वाले मजदूरों को एक-एक मिट्टी की टोकरी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्राए दी ताकि कार्य चालू रहे | अबुलफजल ने लिखा कि इस युद्ध में मिट्टी की कीमत भी स्वर्ण के सामान हो गई थी |
अकबर और उसकी मुगल सैना जयमल के पराकर्म से भयभीत व आशंकित भी थे सो उसने राजा टोडरमल के जरिय जयमल को संदेश भेजा कि आप राणा और चित्तोड़ के लिए क्यों अपने प्राण व्यर्थ गवां रहे हो,चित्तोड़ दुर्ग पर मेरा कब्जा करा दो मै तुम्हे तुम्हारा पैत्रिक राज्य मेड़ता और बहुत सारा प्रदेश भेंट कर दूंगा | किन्तु जयमल ने अकबर का प्रस्ताव साफ ठुकरा दिया कि मै राणा और चित्तोड़ के साथ विश्वासघात नही कर सकता और मेरे जीवित रहते आप किले में प्रवेश नही कर सकते |
जयमल ने टोडरमल के साथ जो संदेश भेजा जो कवित रूप में इस तरह प्रचलित है
है गढ़ म्हारो म्है धणी,असुर फ़िर किम आण |
कुंच्यां जे चित्रकोट री दिधी मोहिं दीवाण ||
जयमल लिखे जबाब यूँ सुनिए अकबर शाह |
आण फिरै गढ़ उपरा पडियो धड पातशाह||
एक रात्रि को अकबर ने देखा कि किले कि दीवार पर हाथ में मशाल लिए जिरह वस्त्र पहने एक सामंत दीवार मरम्मत का कार्य देख रहा है और अकबर ने अपनी संग्राम नामक बन्दूक से गोली दाग दी जो उस सामंत के पैर में लगी वो सामंत कोई और नही ख़ुद जयमल मेडतिया ही थे |
थोडी ही देर में किले से अग्नि कि ज्वालाये दिखने लगी ये ज्वालाये जौहर की थी | जयमल की जांघ में गोली लगने से उसका चलना दूभर हो गया था उसके घायल होने से किले में हा हा कार मच गया अतः साथी सरदारों के सुझाव पर जौहर और शाका का निर्णय लिया गया ,जौहर संपन्न होने के बाद सभी वीरो ने जोहर कुण्ड की भस्म को भाल पर लगा भयंकर सिंहनाद करते हुए युद्ध के लिए निकल पड़े .....किन्तु इसी सैना में एक योद्धा दूसरे योद्धा के कन्धे पे सवार चतुर्भुज रूप धारण किये हुए सैना नायक के रूप में प्रकट हुआ ।
ये विकट रूप चार हाथ अश्त्र शस्त्रो से सुसज्जित कोई और घायल जयमल मेडिया व कल्ला राठौड़ के कंधे पर बैठकर चल पड़ा रणचंडी का आव्हान करने |
दोनों सेनाओ में घमासान होने लगा चारभुजा धारी योद्धाओ के शौर्य से मुगल सैना ऐसे कटती जा रहे जेसे किसान फसलो को काट रहा हो ।चाचा भतीजे का अद्भुत रोद्रकारी रूप मुगल मुंडो के लिए रणचण्डी बना हुआ ओहदे दर ओहदे खाली कर रहा था । और ऐसा प्रतीत होता था की दुश्मनो के काल बने विष्णु देव स्वम अवतरित हो उठे हो ।
जयमल ,कल्ला के दोनों हाथो की तलवारों बिजली के सामान चमकते हुए शत्रुओं का संहार कर रही थी ,रक्त की नदिया वह निकली नर मुंड के ढेर लग गए अकबर और उसकी सैना भाग खड़ी हुई ।
इस अति विषमय कारी युद्ध और उसके शौर्य को देख कर अकबर भी आश्चर्यचकित था |
इस प्रकार यह वीर चित्तोड़ की रक्षा करते हुए दुर्ग की हनुमान पोल व भैरव पोल के बीच लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुवा और सदा सदा केवलिये भारतीय इतिहास में "जय चारभुजाधारी "के जय घोष के नाम से आज भी अमर हुआ जहाँ उनकी याद में स्मारक बना हुआ है |
हिंदू,मुस्लमान,अंग्रेज,फ्रांसिस,जर्मन,पुर्तगाली आदि अनेक इतिहासकारों ने जयमल के अनुपम शौर्य का वर्णन किया है।
"जय चारभुजा की"

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