लो खुल गया नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के मौत का रहस्य
नेताजी सुभाषचन्द्र बसु की मृत्यु का रहस्य (भाग - 1 ) :--
नेहरु की दृष्टि में सुभाष चन्द्र बसु एक "क्रिमिनल" थे क्योंकि उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा था | स्वतन्त्रता सेनानियों पर अत्याचार करने वाले अफसरों की नीन्द 15 अगस्त 1947 को उड़ गयी थी, चिन्तित थे कि जिनपर अमानवीय अत्याचार किये गए अब वे बदला ले सकते हैं, किन्तु नेहरु ने संविधान में अनुच्छेद 314 घुसाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त अफसरों को स्वतन्त्र भारत की कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका द्वारा दण्डित किये जाने के भय से मुक्ति दिला दी, 1971 में जब अन्तिम ICS अधिकारी सेवानिवृत हुआ तब जाकर उसी वर्ष आज़ाद हिन्द फौज के बचे-खुचे जीवित सैनिकों को "स्वतन्त्रता सेनानी" की मान्यता इन्दिरा गाँधी ने दी (CPI के दवाब पर, क्योंकि सुभाष चन्द्र बसु द्वारा स्थापित पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक वाममोर्चा का अंग रही है) |
जिनको अंग्रेजी नहीं आती उनके लिए ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली को नेहरु द्वारा लिखे गए इस पत्र का अनुवाद दे रहा हूँ --
"विश्वस्त सूत्र द्वारा मेरी समझ बनी है कि आपके युद्ध अपराधी सुभाष चन्द्र बोस को स्टालिन ने रूसी क्षेत्र में घुसने की अनुमति दी है | यह रूसियों द्वारा स्पष्ट तौर पर धोखाधड़ी और विश्वासघात है क्योंकि ब्रिटिश-अमेरिकन का रूस युद्ध-सहयोगी है अतः रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए | कृपया इसका संज्ञान लें और समुचित कार्यवाई करें |"
इस पत्र में नेहरु की स्पष्ट मंशा थी कि ब्रिटेन रूस पर दवाब डाले कि सुभाष चन्द्र बसु को ब्रिटिश सरकार के हवाले किया जाय ताकि राजद्रोह के आरोप में उनको भगत सिंह की तरह फाँसी दी जा सके | नेहरु ने सत्ता मिलने के बाद भी आज़ाद हिन्द फौज को भारतीय सेना में सम्मिलित नहीं किया और उसके सैनिकों को स्वतन्त्रता सेनानी की आधिकारिक मान्यता नहीं दी, हालाँकि आज़ाद हिन्द फौज पर अंग्रेजों द्वारा किये गए मुक़दमे में नेहरु ने आज़ाद हिन्द फौज की ओर से बहस की थी, क्योंकि सुभाष चन्द्र बसु तो थे नहीं अतः आज़ाद हिन्द फौज के पक्ष में प्रचण्ड जनभावना का नेहरु लाभ उठाना चाहते थे |
ऐसे ही कारणों से कांग्रेस-मुक्त भारत की आवश्यकता है (कांग्रेस-मुक्त की बजाय "नेहरु वंश से मुक्त" कहना बेहतर होगा) :---
[ (ADDED :-- ) पिछले दो वर्षों से यह पत्र सोशल मीडिया पर टहल रहा है | कांग्रेसियों का कहना है कि यह पत्र फर्जी है, जिसका प्रमाण वे देते हैं कि पत्र में एटली महोदय का नाम गलत है("Attlee" होना चाहिए, अन्तिम "e" गायब है), USSR को Russia लिखा गया है, और एटली को "United Kingdom of Great Britain and Ireland" के बदले "इंग्लैंड" का प्रधानमन्त्री कहा गया है |
ऐसे तर्कों को कुतर्क ही कहा जा सकता है, क्योंकि आमतौर पर "इंग्लैंड" और "रूस" ही प्रचलित शब्द हैं, और यह अधिकारिक पत्र नहीं बल्कि व्यक्तिगत पत्र है | नाम में "e" छूटना एकमात्र "महत्वपूर्ण" त्रुटि है, किन्तु ऐसी त्रुटि तो हमलोग भी करते ही रहते हैं |
एक महोदय ने मुझसे इस पत्र का स्रोत पूछा है | स्रोत बता रहा हूँ | जब 1971 में खोसला कमीशन नेताजी बसु के लापता होने की जाँच कर रहा था तब नेहरु के स्टेनोग्राफर श्याम लाल जैन के बयान की भी खोसला कमीशन ने जाँच की थी | तब नेहरु के स्टेनो जैन साहब ने कमीशन को जो कुछ बताया था वह प्रदीप बोस नाम के एक लेखक ने अपने दस पृष्ठों वाले नोट में लिपिबद्ध किया था जिसमें नेहरु का उक्त पत्र भी प्रदीप बोस ने सम्मिलित किया | आज से ढाई वर्ष पहले सुभाष चन्द्र बसु से सम्बन्धित एक सौ classified (गोपनीय) फाइलों को वर्तमान केन्द्र सरकार ने declassified किया था, उन्हीं में से एक फाइल है -- PMO कार्यालय का एक declassified फाइल जिसका नाम है --
"Disappearance/ Death of Netaji Subhas Chandra Bose 915/11/C/6/ 96-Pol"
इसी declassified फाइल में प्रदीप बसु के दस पृष्ठों वाला उक्त नोट और साथ में नेहरु का वह पत्र भी है जो मैंने आज अपलोड किया है | नेहरु का मूल पत्र तो ब्रिटिश सरकार के गोपनीय दस्तावेजों में धूल फांक रहा है, वह मूल पत्र भारत सरकार के पास नहीं है | ब्रिटिश सरकार अपने चमचे का भाण्डा नहीं फोड़ेगी, इसी भरोसे कांग्रेस कहती है कि यह पत्र फर्जी है और भाजपाइयों की करतूत है, हालाँकि भाजपा की तब स्थापना भी नहीं हुई थी जब खोसला कमीशन के समक्ष नेहरु के भरोसेमन्द स्टेनोग्राफर ने उक्त पत्र के विषयवस्तु का खुलासा किया था | नेहरु के स्टेनोग्राफर श्याम लाल जैन तो नेहरु के विश्वासपात्र थे, और उन्होंने अपनी स्मृति के आधार पर न्यायमूर्ति खोसला के समक्ष नेहरु के पत्र को दुहराया जिसे प्रदीप बसु ने लिपिबद्ध किया | अतः यदि एटली के नाम में "e" छूट गया है तो यह प्रदीप बसु की त्रुटि है, और यदि नेहरु के स्टेनोग्राफर ने पूछताछ के दौरान "United Kingdom of Great Britain and Ireland" को केवल "इंग्लैंड" कह दिया तो कौन सा अपराध कर दिया ? हमलोग भी तो यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका को केवल "अमरीका" कह देते हैं, तो क्या हमलोगों के सारे कथन फर्जी हो जायेंगे क्योंकि हमने अमरीका का पूरा नाम नहीं लिया ? India Today पत्रिका में यह पूरी कथा और उपरोक्त declassified फाइल का विस्तृत नाम प्रकाशित हुआ था - ढाई वर्ष पहले | यह गोपनीय फाइल इन्दिरा गाँधी के काल की है, नरेन्द्र मोदी ने केवल गोपनीयता हटाई है, फाइल में कुछ जोड़-घटाव नहीं किया | प्रदीप बसु या श्यामलाल जैन के कथन झूठे हैं तो इन्दिरा गाँधी ने उनके कथन को महत्वपूर्ण समझकर फाइल क्यों बनवाई और फिर उस फाइल को गोपनीय क्यों किया ?
न्यायाधीश के समक्ष बयान की वैधानिक मान्यता पता है ? कांग्रेसियों और उसकी मीडिया जिसे "बयान मात्र" अथवा फर्जी कह रहे रहे हैं वह सुभाषचन्द्र बसु के लापता होने की न्यायिक जाँच के दौरान न्यायाधीश के समक्ष भारत के प्रधानमन्त्री नेहरु के स्टेनोग्राफर का कानूनी बयान है | वह स्टेनोग्राफर नेहरु के विरोधी नहीं बल्कि सबसे अधिक विश्वासपात्र थे, तभी तो उनके स्टेनो थे | इन्दिरा गाँधी कानून जानती थी, तभी तो उसे गोपनीय फाइल में डालकर PMO में दबा दिया |पिछले दो वर्षों से यह पत्र सोशल मीडिया पर टहल रहा है | कांग्रेसियों का कहना है कि यह पत्र फर्जी है, जिसका प्रमाण वे देते हैं कि पत्र में एटली महोदय का नाम गलत है("Attlee" होना चाहिए, अन्तिम "e" गायब है), USSR को Russia लिखा गया है, और एटली को "United Kingdom of Great Britain and Ireland" के बदले "इंग्लैंड" का प्रधानमन्त्री कहा गया है |
ऐसे तर्कों को कुतर्क ही कहा जा सकता है, क्योंकि आमतौर पर "इंग्लैंड" और "रूस" ही प्रचलित शब्द हैं, और यह अधिकारिक पत्र नहीं बल्कि व्यक्तिगत पत्र है | नाम में "e" छूटना एकमात्र "महत्वपूर्ण" त्रुटि है, किन्तु ऐसी त्रुटि तो हमलोग भी करते ही रहते हैं |
एक महोदय ने मुझसे इस पत्र का स्रोत पूछा है | स्रोत बता रहा हूँ | जब 1971 में खोसला कमीशन नेताजी बसु के लापता होने की जाँच कर रहा था तब नेहरु के स्टेनोग्राफर श्याम लाल जैन के बयान की भी खोसला कमीशन ने जाँच की थी | तब नेहरु के स्टेनो जैन साहब ने कमीशन को जो कुछ बताया था वह प्रदीप बोस नाम के एक लेखक ने अपने दस पृष्ठों वाले नोट में लिपिबद्ध किया था जिसमें नेहरु का उक्त पत्र भी प्रदीप बोस ने सम्मिलित किया | आज से ढाई वर्ष पहले सुभाष चन्द्र बसु से सम्बन्धित एक सौ classified (गोपनीय) फाइलों को वर्तमान केन्द्र सरकार ने declassified किया था, उन्हीं में से एक फाइल है -- PMO कार्यालय का एक declassified फाइल जिसका नाम है --
"Disappearance/
इसी declassified फाइल में प्रदीप बसु के दस पृष्ठों वाला उक्त नोट और साथ में नेहरु का वह पत्र भी है जो मैंने आज अपलोड किया है | नेहरु का मूल पत्र तो ब्रिटिश सरकार के गोपनीय दस्तावेजों में धूल फांक रहा है, वह मूल पत्र भारत सरकार के पास नहीं है | ब्रिटिश सरकार अपने चमचे का भाण्डा नहीं फोड़ेगी, इसी भरोसे कांग्रेस कहती है कि यह पत्र फर्जी है और भाजपाइयों की करतूत है, हालाँकि भाजपा की तब स्थापना भी नहीं हुई थी जब खोसला कमीशन के समक्ष नेहरु के भरोसेमन्द स्टेनोग्राफर ने उक्त पत्र के विषयवस्तु का खुलासा किया था | नेहरु के स्टेनोग्राफर श्याम लाल जैन तो नेहरु के विश्वासपात्र थे, और उन्होंने अपनी स्मृति के आधार पर न्यायमूर्ति खोसला के समक्ष नेहरु के पत्र को दुहराया जिसे प्रदीप बसु ने लिपिबद्ध किया | अतः यदि एटली के नाम में "e" छूट गया है तो यह प्रदीप बसु की त्रुटि है, और यदि नेहरु के स्टेनोग्राफर ने पूछताछ के दौरान "United Kingdom of Great Britain and Ireland" को केवल "इंग्लैंड" कह दिया तो कौन सा अपराध कर दिया ? हमलोग भी तो यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका को केवल "अमरीका" कह देते हैं, तो क्या हमलोगों के सारे कथन फर्जी हो जायेंगे क्योंकि हमने अमरीका का पूरा नाम नहीं लिया ? India Today पत्रिका में यह पूरी कथा और उपरोक्त declassified फाइल का विस्तृत नाम प्रकाशित हुआ था - ढाई वर्ष पहले | यह गोपनीय फाइल इन्दिरा गाँधी के काल की है, नरेन्द्र मोदी ने केवल गोपनीयता हटाई है, फाइल में कुछ जोड़-घटाव नहीं किया | प्रदीप बसु या श्यामलाल जैन के कथन झूठे हैं तो इन्दिरा गाँधी ने उनके कथन को महत्वपूर्ण समझकर फाइल क्यों बनवाई और फिर उस फाइल को गोपनीय क्यों किया ?
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लेखक :- विनय झा
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