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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का रहस्य


नेताजी सुभाषचन्द्र बसु की मृत्यु का रहस्य (भाग - 2 ) :--
पिछले पोस्ट में मैंने जो फोटो संलग्न किया था वह "फर्स्टपोस्ट.कॉम" पर एक कांग्रेसी धूर्त के लेख में दिए गए फोटो का स्क्रीनशॉट मैंने लिया था | उस लेख में उस धूर्त ने नेहरु के उस पत्र को फर्जी बताया और प्रमाण में कहा कि एटली के नाम से :"e" लापता है | बाद की जाँच से मेरा निष्कर्ष यह निकला कि उस कांग्रेसी धूर्त ने ही फोटोशॉप में असली फोटो से "e" हटाकर फर्जी फोटो बनाया था | नेहरु के पत्र का असली फोटो उपलब्ध हो गया है जिसे मैं संलग्न कर रहा हूँ, देखने से ही यह पुराना दस्तावेज लग रहा है और जिस वेबसाइट से यह फोटो मैंने लिया है उसका लेखक भी निष्पक्ष है |
किन्तु नेहरु का यह पत्र मूल नहीं है, मूल पत्र तो ब्रिटिश PMO के गोपनीय फाइल में सड़ रहा है, यदि नष्ट नहीं किया गया होगा | किन्तु यह पत्र भी फर्जी नहीं है, 1970 ईस्वी में नेताजी के लापता होने की जाँच हेतु खोसला कमीशन का गठन हुआ था जिसमें न्यायमूर्ति खोसला के समक्ष नेहरु के तत्कालीन स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन ने न्यायिक बयान दिया था जिसे प्रदीप बसु ने लिपिबद्ध किया, वही लिपिबद्ध न्यायिक दस्तावेज भारतीय PMO के गोपनीय फाइल में दबा दिया गया था जिसे आज से ढाई वर्ष पूर्व मोदी सरकार ने सार्वजनिक कर दिया, अब वह राष्ट्रीय अभिलेखागार में है | न्यायाधीश के समक्ष नेहरु के विश्वस्त स्टेनोग्राफर ने जो बयान दिया वह "न्यायिक दस्तावेज" है, उसे फर्जी कहना दुष्टता है | फर्जी होता तो इन्दिरा गाँधी उसे गोपनीय बनाकर दबाती नहीं |
उस गोपनीय फाइल का क्रमांक मैंने पिछले पोस्ट में दिया है | स्टेनो श्यामलाल जैन जी ने उस दिन न्यायाधीश के समक्ष जो बयान दिया था उसमें एक दूसरे पत्र का उन्होंने उल्लेख किया था जिसमें हस्ताक्षर किसका था यह वे पहचान नहीं सके (अथवा नाम बताने का साहस नहीं कर सके, किन्तु मुझे नाम पता है -- नीचे सावधानी से पढ़ेंगे तो पता चल जायेगा कि इम्फाल मोर्चे पर किसकी गद्दारी के कारण आज़ाद हिन्द फौज हारी थी, उसका नाती आजकल सुपरस्टार है)| वह पत्र किसी ने नेहरु को दिया था जिसके आधार पर नेहरु ने ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली को पत्र भेजा कि "विश्वस्त" सूत्र ने उनको सूचना भेजी है कि नेताजी रूस चले गए, अत: ब्रिटेन और अमरीका का कर्तव्य है कि "युद्ध अपराधी" को शरण देने के लिए रूस पर "समुचित" कार्यवाई करे | तत्कालीन वाइसराय वावेल की भी ईच्छा थी कि नेताजी को "युद्ध अपराधी" घोषित किया जाय, किन्तु ब्रिटेन के सर्वोच्च अधिकारियों और प्रधानमन्त्री एटली ने नेताजी की लोकप्रियता का हवाला देते हुए निर्णय लिया कि नेताजी को "युद्ध अपराधी" घोषित करने से भारत में जनाक्रोश भड़क सकता है, अतः नेहरु के उक्त पत्र के बाद भी एटली ने यही निर्णय लिया कि नेताजी "जहाँ हैं वहीं उनको छोड़ दिया जाय" , अर्थात स्तालिन की कैद में रहने दिया जाय, "युद्ध अपराधी" घोषित करके सार्वजनिक तौर पर मुकदमा चलाना नुकसानदेह होगा | जिस "विश्वस्त सूत्र" का हवाला देकर नेहरु ने एटली को सूचना भेजी, उस "विश्वस्त सूत्र" का नाम श्यामलाल जैन को सम्भवतः पता नहीं था क्योंकि हस्ताक्षर पढ़ने लायक स्पष्ट नहीं था, किन्तु नेताजी की आज़ाद हिन्द फौज में नेहरु के उस जासूस के उक्त पत्र का विषय इतना महत्वपूर्ण था कि श्यामलाल जैन या कोई भी भारतीय मरते दम तक भूल नहीं सकता :--
"नेताजी साइगॉन से विमान द्वारा 23 अगस्त 1945 को 1:30 बजे मंचूरिया में डायरन पहुंचे। विमान एक जापानी बॉम्बर था। सोने के बार और गहने में उनके साथ बहुत सोना था। उतरने के बाद, उन्होंने केला खाया और चाय पी । वह और 4 अन्य, जिनमें से एक जापानी (लेफ्टिनेंट जनरल) अधिकारी शिदेई था, एक जीप में रूसी सीमा की ओर चले गये। लगभग 3 घंटे बाद, जीप वापस आई और पायलट को वापस टोक्यो लौटने के लिए (जीप में सवार शिदेई ने) निर्देश दिया ।"
न्यायमूर्ति खोसला के समक्ष नेहरु के विश्वस्त स्टेनो का न्यायिक बयान मैंने ऊपर उद्धृत किया है जो सिद्ध करता है कि विमान दुर्घटना में नेताजी और जापानी सैन्य अधिकारी शिडेइ की मृत्यु नहीं हुई थी | इस बयान और सम्बन्धित समस्त सूचनाओं को जिस गोपनीय फाइल में इन्दिरा गाँधी ने दबा दिया था उसे मोदी सरकार सार्वजनिक कर चुकी है |
जिस वायुयान की दुर्घटना में नेताजी के मारे जाने की अफवाह (अंग्रेजों को झाँसा देने के लिए नेताजी के ही कहने से) जापानी सरकार ने फैलाई थी वह सचमुच सिंगापुर से बैंकाक, साइगॉन, दा नांग, तायपेई और डायरन/डालियन होते हुए टोक्यो गया था, उसकी कहीं दुर्घटना नहीं हुई थी | साइगॉन का नाम अब "हो चि मिन्ह सिटी" है |
जिनको अंग्रेजी नहीं आती है वे निम्न वेबसाइट पर लेख को चार-पांच छोटे खण्डों में बाँटकर गूगल में अनूदित कर लें (https://translate.google.co.in/#en/hi/) क्योंकि अंग्रेजी या उसके अनुवाद की कॉपी करके पेस्ट करने की भी उस वेबसाइट पर मनाही है | इस लेख में जापान के नागासाकी विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में प्राध्यापक डॉ दीपक बसु द्वारा दी गयी अत्यधिक महत्वपूर्ण और शोधपरक सूचना है |
हालाँकि इस लेख से बहुत पहले ही 1992 ईस्वी में ही इस लेख की सारी सूचनाएँ तथा अन्य कई गोपनीय सूचनाएं मुझे मिल गयी थीं, जब बोरिस येल्तसिन ने स्तालिन द्वारा दबाई गयी बहुत सी गोपनीय सोवियत फाइलों को सार्वजनिक कर दिया था और मोस्को विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने उन फाइलों का अध्ययन करके मीडिया में प्रचारित किया था कि स्तालिन ने नेताजी को सुरक्षित रखने के लिए बन्दी बना लिया था | मैंने स्तालिन का यह वक्तव्य एक पाश्चात्य लेखक के लेख में पढ़ा था कि स्तालिन ने उस समय कहा था कि गाँधी-नेहरु से उसे कोई आशा नहीं है, अतः भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात सुभाषचन्द्र बसु के द्वारा भारत-सोवियत मैत्री की उसे आशा है | नेताजी सबसे पहले स्तालिन के पास ही सहयोग माँगने के लिए गए थे किन्तु तब हिटलर के खतरे से सोवियत संघ जूझ रहा था , उसके बाद नेताजी जर्मनी और जापान गये | किन्तु जर्मनी-जापान का सहयोगी बनने के बाद भी सुभाषचन्द्र बसु ने अपनी गतिविधि को केवल भारत की ओर केन्द्रित किया, जिस कारण जर्मनी-जापान के गिरोह के बाहर सोवियत संघ एकमात्र देश था जिसने ब्रिटेन-अमरीका के मोर्चे का सदस्य रहने के बावजूद आजाद हिन्द सरकार (आरजी हुकूमते आज़ाद हिन्द, "Provisional Government of Free India") के साथ गुप्त रूप से राजनयिक सम्बन्ध बनाये रखे (इस सूचना का स्रोत है Y Udaya Chandar द्वारा लिखित ग्रंथ "India’s Freedom Fighters in Arms"
जिसका वान्छित पृष्ठ इस लिंक पर मिलेगा --
https://books.google.co.in/books?id=zj9mDwAAQBAJ&pg=PT145&lpg=PT145&dq=USSR+too+had+diplomatic+contact+with+the+%22Provisional+Government+of+Free+India&source=bl&ots=9m8k-UdymT&sig=vppWpOD6otb3XTfAHZQ5aAlOhIM&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiP6PmKgt3cAhUaXCsKHVdQAcsQ6AEwAHoECAoQAQ#v=onepage&q=USSR%20too%20had%20diplomatic%20contact%20with%20the%20%22Provisional%20Government%20of%20Free%20India&f=false)|
एटली ने भी कहा था कि सुभाषचंद्र बसु जहाँ हैं उनको वहीं रहने दिया जय, अर्थात ब्रिटेन का भी दवाब था कि नेताजी रूस में ही रखे जायँ, नेताजी को भारत या ब्रिटेन मँगाना एटली (और बाद में नेहरु) के लिए सिरदर्द हो जाता |
1992 ईस्वी में टाइम्स ऑफ़ इन्डिया तथा अन्य कई अख़बारों ने भी उस रूसी प्राध्यापक के शोध को प्रकाशित किया था, जिसके बाद कोलकाता में हंगामा मचा और कुलपति के आदेश पर दो वरिष्ठ प्राध्यापकों को कोलकाता से मोस्को भेजा गया ताकि सम्पूर्ण सूचना और अभिलेखीय प्रमाणों को भारत लाया जा सके | किन्तु उस रूसी प्राध्यापक ने कहा कि आपलोगों को आने में देर हो चुकी है, मुझे भारतीय राजदूत ने कहा है कि इस विषय में कुछ भी खुलासा करेंगे तो रूस से भारत के सम्बन्ध बिगड़ जायेंगे, अत: पहले आपलोग अपने राजदूत से अनुमति ले आइये ( - यह बात भी टाइम्स ऑफ़ इन्डिया ने प्रकाशित की थी)| उस समय के अखबारों के समाचार इन्टरनेट पर नहीं डाले जाते थे, अतः स्मृति के आधार पर मैं मोस्को वाली बात लिख रहा हूँ किन्तु प्रमाण नहीं दे सकता, कोलकाता का कौन सा विश्वदिद्यालय था यह भी स्मरण नहीं है -- जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रो पूरबी रॉय अथवा उनके परिचितों को ढूंढेंगे तो पता चल जाएगा, डॉ हरेंद्र नारायण सरकार की किताब 'ए होमेज टू नेताजी: ए कमेंटरी ऑन द लाइफ एंड एक्टिविटीज' में बहुत सी जानकारी मिलेगी | 1992 में कोलकाता के सम्बन्धित विषयों के वरिष्ठ प्राध्यापकों से पूछताछ करके आपलोग इस बात का प्रमाण इकट्ठा कर सकते हैं कि 1992 की कांग्रेसी सरकार ने रूस से सम्बन्ध बिगाड़ने की धमकी देकर नेताजी की फाइलों को पुन: दबा दिया |
डॉ दीपक बसु के उपरोक्त लेख में दो इन्टरनेट लिंक दिए गए हैं जिनपर दो लोगों ने शोधपरक लेख अपलोड किये थे, किन्तु वे दोनों वेब पृष्ठ कांग्रेसी सेठ बिड़ला के अखबार 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के थे, अतः अब वे वेब-लिंक खोलेंगे तो कुछ नहीं मिलेगा :--http://www.hindustantimes.com/news/specials/Netaji/netajiold.htm
www.hindustantime.com/news/specials/Netaji/purabi.htm
कांगेसियों ने हर जगह से सारे सबूतों को मिटाने के भरपूर प्रयास किये | अब मोदी सरकार नेताजी से सम्बन्धित पुरानी फाइलों को सार्वजनिक कर रही है तो कांग्रेस और उसकी बिकाऊ मीडिया उन फाइलों को फर्जी कह रही है, हालाँकि वे सारे फाइल कांग्रेस ने ही बनाए और दबाये थे !!
1992 में सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ था कि भारत जबतक गुलाम था तबतक स्तालिन ने नेताजी को गुप्त रूप से सुरक्षित रखा क्योंकि अंग्रेज उनको मार डालते, किन्तु जब भारत के स्वतन्त्र होने पर स्तालिन ने नेहरु से कहा कि अब सुभाष चन्द्र बसु भारत लौट सकते हैं तो नेहरु ने वही धमकी दी जो 1992 में दी गयी -- सोवियत संघ से भारत सम्बन्ध तोड़ लेगा !! इस खुलासे के सबूत (अख़बारों की कतरनें) जादवपुर विश्वविद्यालय के कुछ लोगों के पास होंगी, अथवा पुराने अखबारों में ढूँढने पर मिल सकेंगी | उन सबूतों को इकठ्ठा करके न्यायालय के माध्यम से भारत सरकार पर दवाब डाला जा सकता है कि नेताजी के सोवियत संघ जाने के प्रमाण वर्तमान रूसी सरकार से मांगे जाय, क्योंकि 1992 में ही वे फाइल रूस में सार्वजनिक हो गए थे किन्तु पता नहीं क्यों भारतीय प्राध्यापकों को रूसी प्राध्यापक के पास जाना पड़ा, सीधे रूसी अभिलेखागार से सबूत क्यों नहीं माँग सके ? क्या नरसिंह राव सरकार के दवाब पर उन फाइलों को बोरिस येल्तसिन ने पुनः गोपनीय बनाकर दबा दिया ताकि भारत से सम्बन्ध न बिगड़े ?
नेहरु के पत्र का असली फोटो संलग्न है जिसमें एटली का सही नाम है, फोटोशोप में नाम बिगाड़कर कांग्रेसियों ने फर्जी फोटो प्रचारित किया था ताकि सबूत को झुठलाया जा सके | स्टेनो जैन साहब ने जिस दूसरे पत्र का उल्लेख न्यायाधीश के समक्ष किया था उसमें "विश्वस्त सूत्र से मिली सूचना" थी कि नेताजी रूस चले गये | वह विश्वस्त सूत्र था नेताजी का विश्वस्त सेनापति शाहनवाज खान जिसका भाई ब्रिटिश सेना में अधिकारी था, उसी भाई को सारी सूचनाएं भेजकर इम्फाल मोर्चे पर आज़ाद हिन्द फौज को पराजित कराया गया | विभाजन के बाद शाहनवाज खान पाकिस्तान चला गया किन्तु मौलाना आज़ाद ने कहा कि सारे मुसलमान पाकिस्तान चले जायेंगे तो लालकिले पर सात सौ वर्षों का पुराना "पाक" शासन पुनः कैसे स्थापित होगा !! अतः शाहनवाज खान कुनबे के साथ वापस लौटे, यहाँ तक कि अपनी बेटी-जमाई को भी ले आये और पाकिस्तान चले गए एक मुसलमान के दिल्ली वाले खाली घर में उनको कब्जा दिला दिया (विस्थापित मुसलमानों के खाली घरों में पाकिस्तान से आये हिन्दू यदि घुसते थे तो उनको गाँधी जी स्वयं जाकर निकालते थे) -- उसी बेटी से बॉलीवुड का स्टार शाहरूख खान पैदा हुआ (पढ़िए इस संक्षिप्त लेख में -- https://www.facebook.com/vinay.jha.906/posts/1072960612715242 )| नेहरु ने शाहनवाज खान को मन्त्री बनाया और नेहरु की ईच्छा के विपरीत जब भारी हंगामे के कारण नेताजी की मृत्यु की जाँच हेतु आयोग का गठन हुआ तो उस जाँच आयोग का प्रभार शाहनवाज खान को सौंप दिया गया !!!
कोलकाता से जिनलोगों का सम्पर्क है उनसे आग्रह है कि जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रो पूरबी रॉय एवं अन्य लोगों को ढूँढकर RTI द्वारा केन्द्र सरकार से उक्त (1992 ईस्वी वाली) जानकारी के आधार पर पूछें कि रूस (और ब्रिटेन) से नेताजी की फाइलें क्यों नहीं मँगाई जा रही हैं ! अभी चुनावी वर्ष है, आपलोग तत्परता से इस दिशा में कार्य करेंगे तो केन्द्र सरकार सहयोग करेगी, कांग्रेस के दवाब में ममता बनर्जी अडंगा डालेंगी, और तब नेताजी के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी का इलाज किया जा सकेगा | अभी लोहा गर्म है, चोट करने का सही समय है | यह सिद्ध करना आप सबका कर्तव्य है कि नेताजी अमर हैं और उनको "क्रिमिनल" कहने वालों के लिए इस देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए |

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