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महाराज गंगासिंह राठौड़


भारत के इतिहास की बात की जाएं, तो लम्बी सजीले गहरी काली मूंछों वाले सूर्यवंशियों के गौरव का तेज लिए बीकानेर
के महाराजा गंगासिंह के बिना भारत
का इतिहास ही अधूरा है । उनका जन्म राजपुताना की रियासत बीकानेर में लालसिंह जी के यहां 3 अक्टूबर 1880 को हुआ था ।। जब इनका जन्म हुआ, तो इनका राज्य अंग्रेजो के अधीन हो चुका था, इनके बारे में कहा जाता है की यह भविष्य को भी देख सकते थे । महाराज गंगासिंह के शाशन में छप्पनिया काल पड़ा था, लेकिन इन्होंने अपने राज्य के लिए जो कार्य किये, उससे इनका राज्य इस विभीषिका से बचा रहा ।। इनके द्वारा किये गए विकाश कार्यो के लिए इन्हें आधुनिक समय का भागीरथ कहा जाता है । बीकानेर राज्य मरुस्थल में आता है, अतः इन्होंने भारतीय इतिहास में पहली बार अपने राज्य में पंजाब की सतलज नदी से गंग नहर निकलवाई थी, जबकि सतलज नदी से बीकानेर राज्य का कोई भी हिस्सा नही लगता , अंग्रेजो ने भी इस नहर को निकलवाने से साफ इंकार कर दिया था, लेकिन महाराज गंगासिंह की हुंकार के आगे अंग्रेजो को भी झुकना पड़ा , ओर उस समय जब पूरा भारत अकाल की चपेट में था, ओर गंगासिंह का भीमत्स अकाल के समय भी एक समृद्धशाली राज्य बन गया । उस समयबीकानेर भारत का सबसे समर्द्धशैली राज्य बन गया ।।

आधुनिक भागीरथ महाराजा गंगासिंह


maharaja gangasingh bikaner
 महाराज गंगासिंह बीकानेर
अंग्रेज महाराजा गंगासिंह जी की वीरता से भलीभांति परिचित थे ।। इनकी वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इन्फिरियल वार के अंग्रेजो की कैबिनेट में एकमात्र भारतीय सदस्य महाराजा गंगासिंह थे ।।
महाराजा गंगासिंह की अलग से फ़ौज थी, जिसमे पूरे देश से सर्वोत्तम सिपाहियों को भर्ती किया जाता था, इस आर्मी को गंगाआर्मी या गंगारिसाला कहकर पुकारा जाता । प्रथम विश्वयुद्ध में इसी गंगाआर्मी के दम पर अंग्रेजो ने जिक्त हासिल की थी, ओर रजपूतो ने विदेशी धरती पर भी अपने जीत के झंडे गाड़ दिए ।। फिलिस्तीन मिस्र ओर फ्रांस को एक साथ धूल चटाने में महाराज गंगासिंह जी का ही महत्पूर्ण योगदान था, इन देशों के विरुद्ध की गई लड़ाई में महाराज गंगासिंहः स्वम् सेनापति थे ।। जब इन तीन देशों को बीकानेर की सेना ने धूल चटा दी, इसके बाद महाराजा गंगासिंहः का कद पूरे भारत मे बहुत ही बड़ा हो गया ।।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज ने अपनी मेमोरी में लिखा है --
" महाराज गंगासिंह अपने महात देश के महान लोगो का प्रतीक थे, वे एक महान वीर है । उनके रूप में हमे दुनिया का सबसे समझदार ओर वीर व्यक्ति मिला था ।जब भारत आजाद हुआ, ओर पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था, तो इसी गंगाआर्मी ने भारतीय सेना का नेतृत्व करते हुए पाकिस्तानियों को खदेड़ खदेड़ कर मारा था ।।
राजस्थान में महाराजा गंगासिंह की वीरता का एक किस्सा मशहूर है --
जब महाराज गंगासिंह की वीरता की खबरे ब्रिटिश प्रधामनंत्री लार्ड पंचम तक पहुंची, तो प्रधामनंत्री ने उन्हें मिलने का न्योता भेजा ।महाराज गंगासिंह अंग्रेजो की धूर्तता से भली भांति परिचित थे, ओर यह भी जानते थे, की अंग्रेज भारतीयों को अपमानित करने का कोई भी मौका नही छोड़ते , गंगासिंह जी के बारे में कहा जाता है, की वे करणी माता के बहुत बड़े भक्त थे, अतः करणी माता का नाम लेकर यह इंग्लैंड की ओर रवाना हुए , जब लार्ड पंचम से मिलने वह राजदरबार में पहुंचे, तो दरबार खंचा खंच भरा हुआ था, ओर बीचों बीच एक पिंजरा पड़ा हुआ था, जिसमे शेर दहाड़ मार रहा था, गंगासिंह जी परिस्थितियों को भांप चुके थे, तभी किंग जॉर्ज पंचम खड़ा हुआ, ओर पूरी सभा को गंगासिंह जी से परिचित करवाया और पूरी सभा के सामने गंगासिंहः जी की वीरता का बखान करते हुए उन्होंने गंगासिंह जी को उस शेर से लड़ने की चुनोती दी ।। गंगासिंह जी को जिसका डर था, वहीं हुआ, लेकिन आने देश और राजपुत रक्त की लाज रखते हुए , उन्हें शेर से लड़कर मरना मंजूर था, गंगासिंह जी ने अपनी इष्ट देवी करणी माता को याद किया, ओर शेर के पिंजरे में प्रवेश कर गए ।। कुछ पल के लिए शेर उन्हें ताकता रहा, लेकीन् जैसे ही शेर ने उनके ऊपर छलांग लगाई, शेर के ऊपर गंगासिंहः जी ने जोरदार वार किया, ओर एक ही वार में गंगासिंह जी ने शेर का काम तमाम कर दिया ।।
पूरा अंग्रेजी दरबार खड़ा हो गया, उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नही हो रहा था, की कैसे एक साधारण सा मनुष्य एक ही वार मे कैसे एक विशाल को इस तरह ढेर कर सकता है ।
पूरा दरबार गंगासिंह जी सम्मुख नतमस्तक खड़ा था, इस बात के लिए स्वयं महारानी ने गंगासिंह जी से माफी मांगी । ब्रिटिश राजदरबारों से जुड़ी फाइल में इस घटना का अच्छे से उल्लेख किया है ।
वीरता, दया , शौर्य ओर आधुनिक भारत के सब्जस आधुनिक चरित्र महाराज गंगासिंह की जयंती को कल पूरा भारत मनाएं, इसकी में आशा करता हूँ ।। आप इस लेख को प्रत्येक भारतीय तक पहुंचाएं ।।
नारायण ।।
जय महाराज गंगासिंह जी

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